गीत/नवगीत

गीत : भाव

गर जा ही रहे हो सुनो “प्रिये”
उपहार भेंट में लाई हूँ
मन से उर तक की पीड़ा के
मै भाव भेंट में लाई हूँ–!

वो मिलन की सुन्दर सी घँड़ियाँ
बालों की सब उलझी लड़ियाँ
सुरमई अँखियों में मचल-मचल
ठहरे पानी का बह जाना
तन की सुगन्ध मन की पतंग की
डोर थमाने आई हूँ–!

मुस्काऊँगी, खिल जाऊँगी
अँखियन से दीप जलाऊँगी
देखोगे अगर मुड़कर के तुम
पीछे-पीछे आ जाऊँगी
मै तुम्हें तुम्हारी खुशियों का बस
मन लौटाने आई हूँ–!

रोके न बनी जग रीत धनी
दोहरे मन की कब प्रीत फली
मन मेरा एक,एक प्रिय तुम
तुम्हें बिन पहचाने रात ढली
कभी भूलो तुम न भूलें हम
यादों की ऐसी बरमाला
मै भेंट चढाने आई हूँ–!

नीरू “निराली”

 

नीरू श्रीवास्तव

शिक्षा-एम.ए.हिन्दी साहित्य,माॅस कम्यूनिकेशन डिप्लोमा साहित्यिक परिचय-स्वतन्त्र टिप्पणीकार,राज एक्सप्रेस समाचार पत्र भोपाल में प्रकाशित सम्पादकीय पृष्ट में प्रकाशित लेख,अग्रज्ञान समाचार पत्र,ज्ञान सबेरा समाचार पत्र शाॅहजहाॅपुर,इडियाॅ फास्ट न्यूज,हिनदुस्तान दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित कविताये एवं लेख। 9ए/8 विजय नगर कानपुर - 208005