गीत : भाव
गर जा ही रहे हो सुनो “प्रिये”
उपहार भेंट में लाई हूँ
मन से उर तक की पीड़ा के
मै भाव भेंट में लाई हूँ–!
वो मिलन की सुन्दर सी घँड़ियाँ
बालों की सब उलझी लड़ियाँ
सुरमई अँखियों में मचल-मचल
ठहरे पानी का बह जाना
तन की सुगन्ध मन की पतंग की
डोर थमाने आई हूँ–!
मुस्काऊँगी, खिल जाऊँगी
अँखियन से दीप जलाऊँगी
देखोगे अगर मुड़कर के तुम
पीछे-पीछे आ जाऊँगी
मै तुम्हें तुम्हारी खुशियों का बस
मन लौटाने आई हूँ–!
रोके न बनी जग रीत धनी
दोहरे मन की कब प्रीत फली
मन मेरा एक,एक प्रिय तुम
तुम्हें बिन पहचाने रात ढली
कभी भूलो तुम न भूलें हम
यादों की ऐसी बरमाला
मै भेंट चढाने आई हूँ–!
— नीरू “निराली”