“कुंडलिया”
गैया मेरी काबरी, मुझे पिलाये दूध
गर्मी बेपरवाह है, हौका पानी धूध्
हौका पानी धूध्, खुले आकाश विचरती
मैली हुई मुराद, सु मांस मोह में मरती
दे गौतम नहलाय, अलौकिक है गौ मैया
सगरो तीरथ धाम, वसे सुख मूरत गैया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
गैया मेरी काबरी, मुझे पिलाये दूध
गर्मी बेपरवाह है, हौका पानी धूध्
हौका पानी धूध्, खुले आकाश विचरती
मैली हुई मुराद, सु मांस मोह में मरती
दे गौतम नहलाय, अलौकिक है गौ मैया
सगरो तीरथ धाम, वसे सुख मूरत गैया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी