“कुंडलिया”
वरगद अब बूढ़ा हुआ, हो गइ बूढ़ी छांव
गलियाँ सूनी हो गई, बिन चौपाली गाँव
बिन चौपाली गाँव, घोसले शहर सरकते
बित्ते भर के पाँव, घाव ले दर्द भटकते
गौतम किधर मचान, कहाँ है वर तर गदगद
माटी बिना मकान, किधर फल तरुवर वरगद॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी