“मकरंद छंद”
नयन सुखारे, वचन विचारे
बुधि सुधि सब सुख, हरि चित लाए।
लय बिन रागा, विचलित कागा
चरन कमल प्रभु, रिधि सिधि छाए।।
विनय विशाला, नयन रसाला
अधरन मृदु रस, मन मन भाए।
पुलक शरीरा, रमत फकीरा
बिहरत जँह तँह, हरि गुन गाए।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी