“मुक्तक”
यहीं पर था सरोवर एक पानी पी गए कौए
नए जोड़े मिले थे दो किनारे खो गए हौए
बड़े पोखर मिला करते लिए अपनी तलैया को
अभी की हाल देखो तो सुराही पी गए पौए॥
बहुत पैमाल है पानी पियासे होठ तट मिनके
कहाँ पर नाव चलवाऊ यहाँ मिलते नहीं तिनके
भरे गोदाम हैं कचरे अहमियत भी मिटा डाले
कहीं यदि हाथ लग जाये भली नव नाक नथ भिनके॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी