“मुक्तक”
खुशी मिलती कहाँ कोई बता तो दे ठिकाने को
सजा लू ढूंढकर उसको पता तो दे बिराने को
उसी की ताक में रहते उसी से दिल लगा बैठे
कहाँ रहती प्रसन्ना वह मुकामे खिल खिलाने को॥
नहीं कोई डगर बाकी जहाँ ढूंढा नहीं वन को
खुशी आनंद की मल्लिका लुभाए हर्ष मनमन को
तभी गौतम बिरह की बाग में जाते ही डर जाता
न जाने किस दशा में डालियाँ तकती हैं दरपन को॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी