कविता – आदमी की फ़ितरत
मेरे बदन से
तू लिपट तो गया है
इश्क का फरेबी जाल गूथकर
अज़ीज दिलबर की तरह
मगर मुझे पता है
कि कुछ वक़्त गुज़रने पर
तू वैसे ही मुझ को खुद से अलग कर देगा
जैसे —
सफ़र से वापसी के बाद
कोई अपना लिबास उतारक
फेंक देता है बिस्तर पर
या फिर टांग देता है खूँटी पर