मुक्तक
मुक्तक
आसमां को छू सकूँगी देखना अब एक दिन
चाँद तारों की करूँगी सैर मैं तब एक दिन
दूर तक उड़ कर गगन छू लूँ किसी की फिर न सुन
आस है मुझको करूँगी नाम मैं तब एक दिन
ज्ञानी से भी बढ़ा है निरक्षर
तौल जरा अब देखो हर आखर
पढ़ा नहीं पर है वो बहुत गुनी
आता जब अपनी तो है खन्जर
कहे सभी साक्षर हो जाएँ हम
पढ़ कर दो अक्षर सीख पाये हम
भास तब ही बुरे -भले का होगा
विकास भारत का कर पाये हम
डॉ मधु त्रिवेदी