मैं नास्तिक हूँ
ख़ुदा
मुझे पता है
तू सब कुछ कर सकता है
फिर भी
कुछ तो है
जो तू नहीं कर सकता।
तू भी मेरी तरह है
जो सोचता है
वही करता है
फिर भी
कुछ न कुछ बाकी रह जाता है
जैसे
मुझ से भी काफी कुछ छूट जाता है।
मैं समझता था
तू अन्जान है
लेकिन
तू जानबूझ कर
अन्जान बनता है।
तुझे मेरा खुशी और ग़म
दिखाई तो देता है
मगर
तू मुँह फेर लेता है
तुझे मेरी चीखें
सुनाई तो देती हैं
मगर
तू कान बन्द कर लेता है।
तुझे सब ख़बर रहती है
कि मुझ पे
कैसे-कैसे ज़ुल्मों-सितम ढाया जा रहा है।
मगर
तू भी मजबूर है
तूने भी
दुनियादारी सीख ली है
तू भी
मतलबी हो चुका है
मैं तुझ पे विश्वास नहीं करता हूँ
अपना काम तेरे भरोसे नहीं छोड़ता हूँ
मस्जिद और दरगाह नहीं जाता हूँ
तो फिर
तू ही भला
मेरा क्यों ध्यान दे।
मैं छाती ठोककर कहता हूँ
‘मैं नास्तिक हूँ’
मगर
अब तू बता
तू क्या है
जो मुझे इस मतलबी दुनिया में
अकेला छोड़ कर चला गया
मुझे तो लगता है
तू मतलबी है
तूने मुझे औरों की भाँति
अपना सजदा करने के लिए
जमीं पे भेजा था न।
मगर
तू सुन ले
मैं ऐसा नहीं करूँगा
मैं मेहनतकश इंसान हूँ
मैं तेरे भरोसे नहीं जीऊँगा