इंसानियत –एक धर्म ( भाग — बीसवाँ )
मंद मंद मुस्कुराते हुए वकिल राजन पंडित ने रहस्योद्घाटन किया ” असलम की जमानत के पैसे जमा हो गए हैं । बस ! वो अभी रसीद लेकर आता ही होगा । ”
राखी अचानक से चौंक गयी ” पैसे जमा हो गए हैं ? किसने दिए ? और ये ‘वो ‘ कौन है ? ”
” रिलैक्स रिलैक्स बेबी ! अभी तुम्हारे हर सवाल का जवाब मिल जाएगा । बस थोड़ी धीरज रखो । सुनो ! अदालत कक्ष से बाहर आते हुए ही तुम्हारे पिताजी का फोन आया था । तुम्हारे बारे में जानना चाहते थे । यहां की पूरी खबर जानकर उन्होंने मुकदमे का सारा खर्च खुद वहन करने की इच्छा जताई । अब उनकी मर्जी के खिलाफ मैं तो कुछ सोच भी नहीं सकता ये तो तुम जानती ही हो । बस बन गयी बात । और ये ‘वो ‘ और कोई नहीं मेरा मातहत एक जूनियर वकील है जो पैसे जमा कराकर रसीद ले आएगा । अब समझ में आया कि पैसे का इंतजाम कहाँ से हुआ है ? ” वकील साहब अभी भी मंद मंद मुस्कुराये जा रहे थे ।
राखी जैसे अभी भी संतुष्ट न होने का भाव चेहरे पर लाते हुए बोली ” लेकिन पिताजी ने पैसे तो नहीं भेजे न ? उनके द्वारा भेजे जाने वाले पैसे इतनी जल्दी थोड़े ही आपको मिल पाएंगे । ”
” तुम ठीक कह रही हो बेटा ! लेकिन उनकी जुबान ही मेरे लिए बहुत कुछ है फिर पैसे का क्या है ? फिलहाल तो अभी मैंने पैसे अपने पास से ही जमा कराए हैं । कुछ ही देर में मेरे पैसे मेरी फीस के साथ मेरे एकाउंट में जमा जो जाएंगे । देखो बेटा ! जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं जब सब कुछ होते हुए भी इंसान कुछ समय के लिए बेबस , लाचार व असहाय हो जाता है । ऐसे समय इंसान की ईमानदारी व सच्चाई ही उसका सहारा बनती हैं । अपने अहम को त्याग कर उसे अपनों की मदद को स्वीकार भी करनी चाहिए । और देखो मैंने वही किया है । ” कहते हुए वकील साहब ने दरवाजे पर आए नव युवक को देखकर बोले ” पैसे जमा हो गए ? ”
” जी ” बड़ा ही संक्षिप्त सा उत्तर था उसका ।
” और रसीद ? ”
अपनी जेब से एक कागज का टुकड़ा निकालकर उस युवक ने खामोशी से वकील साहब की तरफ बढ़ा दिया ।
उसके हाथों से वह रसीद लेकर वकील साहब ने सरसरी निगाह उस पर्ची पर डाली और फिर अपने फाइल में से दो कागज निकाल कर उस पर्ची को भी उनके साथ संलग्न किया और उसे राखी की तरफ बढ़ाते हुए बोले ” लो बेटी ! यह पूरे कागजात हैं जो असलम की रिहाई के लिए आवश्यक हैं । इसमें जज साहब के आदेश की कॉपी , जमानत के पैसे जमा करने की रसीद और दरोगा के नाम एक अर्जी जो कि मैंने लिखी है । तुम्हें बस यह सभी कागज रामपुर थाने में जाकर दरोगा को दे देनी है । इसके बाद आवश्यक कार्रवाई करके दरोगा असलम को रिहा कर देगा । इन सभी कागजातों का एक एक फोटोकॉपी निकलवाना नहीं भुलना । ये आवश्यक कागजात हैं जो कभी भी काम आ सकते हैं । मेरी समझ के अनुसार असलम के रिहा होने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए फिर भी अगर कोई दिक्कत पेश आयी तो मुझे तुरंत फोन करना । ठीक है ? समझ गयीं सब ? ”
राखी के स्वीकारने वाले अंदाज में सिर हिलाते ही वकील साहब बोल पड़े ” तो बेटा ! अब और देर न करो ! उठो और अपने काम पर लग जाओ । best of luck बेटा ! bye “
पांच मिनट बाद ही राखी रजिया के साथ एक ऑटो में सवार होकर रामपुर थाने की तरफ बढ़ी जा रही थी । दोनों के बीच आश्चर्यजनक रूप से खामोशी का साम्राज्य पसरा हुआ था । राखी अलबत्ता बार बार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखकर अपने मन की बेचैनी जाहिर कर रही थी । जबकि रजिया अभी भी ऊपर से शांत नजर आ रही थी लेकिन उसके अंदर एक अजीब सी उथलपुथल मची हुई थी ।
उसके मन में तरह तरह के विचार आ रहे थे ‘ ऐन वक्त पर कोई गड़बड़ हो गयी और असलम की रिहाई नहीं हुई तो ? चलो मान लो उसकी रिहाई हो भी गयी तो क्या अब वह पहले की ही तरह से लोगों के बीच सिर उठाकर घुम सकेगा ? लोग क्या जहर बुझे व्यंग के तीरों से असलम का सीना छलनी नहीं कर देंगे ? या अल्लाह ! अब तू ही रहम कर ! अपने बंदे को रुसवा होने से बचा ले ऐ दुनिया के मालिक ! बंदा परवर गरीब नवाज ! या अल्लाह ! रहम कर आमीन ! ‘
ऑटो एक झटके से रामपुर थाने के सामने रुकी और रजिया की तंद्रा भंग हुई । यथार्थ में लौटते हुए वह ऑटो से उतर कर राखी के साथ थाने के भीतर प्रवेश कर गयी । राखी ने पहले ही ऑटो का किराया दे दिया था सो उनके उतरते ही ऑटोवाला चलता बना ।
राखी दुसरी बार थाने आयी थी इसलिए दरोगा पांडेय जी के दफ्तर का कमरा उसे ज्ञात था ही । सीधे उनके दफ्तर में ही घुसती चली गयी ।
पांडेय जी मानो उसका ही इंतजार कर रहे थे। संस्कारी राखी ने उन्हें देखते ही नमस्कार किया और हाथ में थमा हुआ कागज उनकी तरफ बढ़ा दिया । पांडेय जी ने वह कागज थामते हुए उन्हें बैठने का इशारा किया । रजिया भी सलाम करती हुई राखी के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गयी ।
कागजों पर सरसरी निगाह डालने के बाद पांडेय जी ने मुस्कुराते हुए राखी की तरफ देखा और तेजी से मेज पर रखी घंटी बजा दिया । घंटी बजाते ही एक हवलदार भागते हुए कमरे में आया और पांडेयजी को सैलूट कर उनके सामने खड़े हो गया । उसकी तरफ देखते हुए पांडेय जी ने उसे हवालात से असलम को ले आने के लिए कहा ।
हवलदार के जाते ही पांडेय जी राखी से मुखातिब हुए ” बेटा ! ये पंडित जी तुम्हारे कोई पुराने परिचित हैं क्या ? ”
राखी ने अदब से जवाब दिया ” जी ! वकील अंकल मेरे पिताजी के घनिष्ठ मित्रों में से एक हैं । उनका हमारे घर भी आना जाना है । बस यूं समझ लीजिए हमारे घरेलू रिश्ते हैं । वे मेरे पिता समान ही हैं । ”
कोई गहरा राज जान लेने जैसी खुशी जाहिर करते हुए पांडेय जी बोले ” तभी तो ! मैं कहूँ ! इतना खुला मुकदमा जिसमें मुलजिम के बचने का कोई चांस नहीं है इतने बड़े वकील ने ले कैसे लिया ? कोई भी दूसरा वकील इस केस को हाथ भी नहीं लगाता लेकिन तुम्हारे घरेलू रिश्ते ने वकील साहब को यह मुकदमा लड़ने का साहस प्रदान किया । और देखो ! कितनी शानदार दलीलें देकर उन्होंने सरकारी वकील की बोलती बंद कर दी । अदालतों के इतिहास में यह एक कीर्तिमान ही है कि कोई हत्या का अभियुक्त अपनी पहली ही पेशी में रिमांड पर दिये जाने के बजाय जमानत पा जाए । यह उनकी ही काबिलियत थी कि जज साहब को असलम की जमानत अर्जी मंजूर करनी पड़ी । यह सब देखकर अब मुझे विश्वास हो चला है कि वकील साहब असलम को बेदाग बचा लेंगे । लेकिन कैसे ? इसी का जवाब मेरे पास नहीं है । अब हमें यही देखना है कि कैसे बचाते हैं असलम को । ”
तभी हवलदार असलम को लेकर कमरे में आ गया ।