पछताना होगा
चमक देखकर नेह लगाया ,तरु! तुझको पछताना होगा ।
अमरबेल के अंकपाश में घुट घुट के मर जाना होगा ।
जलकुंभी जैसी हरियाली काम किसी के कब आई है?
कब छाया लंबे खजूर ने भला किसी को पहुँचाई है ?
कब रक्ताभ फूल सेमल के ,महकें तरुवर की डालों पर,
स्वादहीन वह,गंधहीन वह,चिड़िया आकर पछताई है।
इन जैसों से करी मिताई,निश्चय ही ठग जाना होगा ।
चमक देखकर …………………………….
कड़वी नीम ,भले कड़वी है,लेकिन कितनी गुणकारी है?
छोटा फूल रातरानी का ,पर महकी बगिया सारी है ।
रुप रंग का ,गुण स्वभाव से,कोई मेल नही होता है,
मधुर सलोने बोल कहे,जबकि कोयल होती कारी है ।
मणि का मोल वही जानेगा ,जो जौहरी पुराना होगा।
चमक देखकर…………………………….
कुंजर ने उखाड़कर फेंका,कमलकोश मे कैद भ्रमर को।
मोहपाश मे जला पतंगा ,दया न आई वैश्वानर को ।
कब मरुथल के आभासी पानी ने मृग की प्यास हरी है,
मृगतृष्णा में फिर कुरंग ने ,प्राण तजे ,दिन मध्य पहर को।
उसे प्रेम में मिटना होगा,जो पागल दीवाना होगा ।
चमक देखकर………………………………
————-© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी