कविता : आदमी की चाह
आदमी को चाहिए
दो जोड़ी कपड़े
भरपेट भोजन और
सिर पर छप्पर
जब यह मिल जाता है
तो आदमी को चाहिए
एक बंगला
चार पहिये वाली गाड़ी
और बैंक बैलेंस
जब यह भी मिल जाता है
तब आदमी चाहता है
दुनिया को काबू में करना
और महान बनना
इसी जद्दोजहद में
आदमी का बचपन
जवानी और बुढ़ापा
चला जाता है
पर आदमी की इच्छाओं का
स्वच्छंद आकाश
कभी ना तृप्ति के मेघों से
ढक पाता है !