कविता

कविता : सपना

आदमी
जब अपने सपनों को
तिलांजलि देकर
किसी औरत के लिए
बुनता है
एक नया सपना
तब वह बन जाता है पति
और जब पति
पत्नी के ख्वाबों की
दुनिया छोड़
देखने लगता है
अपनी संतान के लिए
एक नया सपना
तब वह पति
बन जाता है पिता
इस तरह एक आदमी
सांसरिक बंधनों के व्यूह में
ता-उम्र ढोता है
सपनों का भार
समझो तो ये भार है
रिश्ते-नाते, प्यार और संसार।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]