कविता

कविता : हिलोर

इक हिलोर
तेरी यादों की
सुने अंतस के
सुप्त कणों में
रह-रह कर
उठती है
इक हिलोर
अतीत के कब्र में
दफन आदमी की
परत दर परत को
उखेड़ती है
इक हिलोर
स्वार्थ की दुनिया के
झूठे बंधनों से मुक्तकर
सच्चे रिश्तों का
ताना-बाना बुनती है
इक हिलोर में
मर के जीना होता है
और इक हिलोर में
नीलकंठ बन सारे
जग का विष पीना होता है।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]