कविता

कविता : औरत

औरत !

जिंदगी भर

भट्टीखाने में

धुएं में

रोटियां

सेंकती हुई

बच्चों की

परवरिश में

गंवा देती है

जिंदगी

मर्द की डांट

सहकर

जुल्म बर्दास्त कर

खामोशी – सी

अख्तियार कर

खड़ी रहती है

बूत के भांति

औरत !

नसीब में

लिखाकर आती है

दर्द का छंद

जिंदगी भर

पड़ौस की सहेलियों के

समक्ष पढ़ती है

दिन में हुई

पल – पल की

हलचल के गीत

औरत !

समर्पण भाव से

मर्यादा के लबादे में

पिता की इज्जत के

खातिर

सह लेती है

ससुराल का हर जुल्म

औरत !

पीड़ा का समंदर

साहस का चरम

भावना और ममता का

अथाह प्रवाह

सबको समेटती है

अपने आंचल की छांव में….

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]