लघुकथा

वेटिकनसिटी

“मेरी बच्ची, तू सोच रही होगी कि माँ डायन है, अपनी ही बच्ची को खाए जा रही है। पर नहीं, मेरी प्यारी गुड़िया, मैं उद्धार कर रही हूँ तेरा| इन अहसान-फरामोशों की बस्ती में आने से पहले ही मुक्त कर रही हूँ तुझे| क्या करूँ, बेबस हूँ और तेरे भविष्य की भी चिंता है न मुझे?”

“माँ-माँss..”

“क्या हुआ मेरी बच्ची ?”

“माँआआअ, सुनो न,  देखो डाक्टर अंकल  ने पैर काट दिए मेरे…”

“ओ मुए डॉक्टर ! मेरी बच्ची, मेरी लाडली को दर्द मत दें| कुछ ऐसा कर ताकि उसे तकलीफ़ न हो|”

“माँ मेरा पेट…”

“ओह मेरी लाडली, इतना कष्ट सह ले गुड़िया, क्योंकि इस दुनिया में आने के बाद इससे भी भयानक प्रताड़ना झेलनी पड़ेगी तुझे ! 

मुझे देख रही है न, मैं कितना कुछ झेलकर आज उम्र के इस पड़ाव पर पहुँची हूँ|”

“माँ -माँआआआ, इन्होंने मेरा हाथ ..”

“आहss मेरी नन्ही गुड़िया, चिंता न कर बच्ची। जिनके कारण तूझे इतना कष्ट झेलना पड़ रहा है, वो एक दिन “वेटिकनसिटी” बने इस शहर में रहने के लिए मजबूर होंगे, तब समझ आएगी लड़की की अहमियत|” तड़पकर माँ बोली

“माँsss अब तो मेरी खोपड़ी आहss माँsssss प्रहार कर रहे हैं अंकल !”

 “तेरा दर्द सहा नहीं जा रहा, मेरे दिल के कोई टुकड़े करें और मैं जिन्दा रहूँ ! न-न, मैं भी आ रही हूँ तेरे साथ| 

वैसे भी लाश की तरह ही जी रही थी | आज मैं भी ….”

डॉक्टर बाहर आकर ..”सॉरी सर, मैं माँ को नहीं बचा पाया| मैंने पहले ही कहा था बहुत रिस्क है इसमें  ….”

सुरेश ने माथा पीट लिया ….| अनचाहे के चक्कर में उसने अपनी चाहत भी खो दी थी |

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|