रिश्ता
कैसा रिश्ता है अपना…
कुछ कच्चा, कुछ पक्का सा…
पानी के बुलबुले पे तैर
आकाश छूने की ख्वाहिश
इरादे मजबूत इतने कि
पहाड़ से भी टकरा जाए
और नाजुक इतना कि
ज़रा सी छुअन से भी टूट जाए
कैसा रिश्ता है अपना…..
थाम सपनो का आँचल
ओढ़ पलकों की चादर
करे सातो आसमान की सैर
और आँख खुलते ही
यथार्थ के धरातल पर
टुकड़े-टुकड़े हो बिखर जाए
कैसा रिश्ता है अपना……
खुशियाँ इतनी समेटे हुए कि
सारी दुनियां लगे क़दमों तले
गम भी लिए इतने कि
आँखों से अश्क सदैव छलके
राधा कृष्ण की जोड़ी सा
भरम सदा ही झलके
कैसा रिश्ता है अपना….