“पावन छंद”
नाचत हिरन वहाँ, वनराज वन में
सोहत मुकुट जहाँ, युवराज धन में।।
मोहक किरन कली, हमराज अपना
नाहक फिरन चली, गृहकाज सपना।।
आवत चपल सखी, मनमोर चहके
गावत घुमत गली, चितचोर छहके।।
झूमत नटत सखी, बड़बोल करती
लागत चतुर बड़ी, चहुँओर फिरती।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी