मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

कुटी मेरी महल मेरा, किराए का नही जानों

बनाया हाथ से अपने, सजाया गाँव तुम मानों

कहीं गफलत न हो जाए, तुम्हारी आँख के चलते

नजरिये से तनिक कह दो, बगावत मत अभी ठानों।।-1

सदी बदली समय बदला, मगर क्या गांव घर बदला

ठहर पूछों कहीं पर भी, चलन का मोड़ भी बदला

उठा कर देख लो मिट्टी, पसिजते हाथ हैं अब भी

न बुत बदला न हुत बदला, न ग्राम उबटन ही बदला।।-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ