“मुक्तक”
कुटी मेरी महल मेरा, किराए का नही जानों
बनाया हाथ से अपने, सजाया गाँव तुम मानों
कहीं गफलत न हो जाए, तुम्हारी आँख के चलते
नजरिये से तनिक कह दो, बगावत मत अभी ठानों।।-1
सदी बदली समय बदला, मगर क्या गांव घर बदला
ठहर पूछों कहीं पर भी, चलन का मोड़ भी बदला
उठा कर देख लो मिट्टी, पसिजते हाथ हैं अब भी
न बुत बदला न हुत बदला, न ग्राम उबटन ही बदला।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी