लघुकथा

अनोखी खुशी

काजल बड़ी तेजी से चलती हुई बस स्टॉप की तरफ बढ़ रही थी । उसे कॉलेज जल्द से जल्द पहुंचना था । बस्ती से निकल कर मंदिर से आगे बढ़ने पर मंडी की भीड़ भाड़ से वह बाहर निकली ही थी कि रास्ते के एक किनारे लगभग तीन वर्षीय एक छोटी सी गुड़िया सी मासूम बच्ची को सुबकते देखकर उसके कदम ठिठक गए । उसने एक पल खड़े रहकर आसपास का जायजा लिया । उसे आसपास उस बच्ची का कोई परिचित दिखाई नहीं पड़ा । राहगीरों की भीड़ भी एक बार उस बच्ची पर नजर डालकर अपने रास्ते पर आगे बढ़ जाती । काजल आगे बढ़ी और उस बच्ची से उसका नाम पूछते ही वह फफककर रो पड़ी । बगल के दुकान से एक चॉकलेट खरीद कर उसे चुप कराने का उसका प्रयास सफल हुआ लेकिन अभी भी वह अपना नाम वगैरह नहीं बता पा रही थी । बस ‘ मम्मी मम्मी ‘ की रट लगाए जा रही थी । काजल को पहले ही काफी देर हो चुकी थी लेकिन वह बच्ची को उसके हाल पर नहीं छोड़ सकती थी । काफी सोच विचार कर वह बच्ची को गोद में लिए नजदीक ही पुलिस चौकी में पहुंच गई । बच्ची को गोद में लिए वह जैसे ही शिकायत लिखाने वाले कक्ष में पहुंची उसे देखते ही एक भद्र महिला ने उसकी गोद से झपटते हुए उस बच्ची को अपनी गोद में ले लिया और बेतहाशा प्यार करने लगी । बच्ची भी खुशी से किलकारी भरकर उसके गले से लिपट गयी । मां और बेटी का यह मधुर मिलन देखकर काजल की आंखें भर आईं । मां बेटी की खुशी को महसूस करके काजल अनोखी खुशी का अनुभव कर रही थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।