कविता

कविता : लक्ष्य

चलने से पहले
सोंच समझकर
अपने लक्ष्य की
रेखाएँ खींचना चाहता हूँ।

लक्ष्यहीन
भटकन से बचकर
उस मंजिल तक
पहुंचना चाहता हूँ।

न आए निराशा
काँटों के रास्ते
चक्रव्यूह से बचकर
किनारे तक पहुंचना चाहता हूँ।

डॉ. विश्वनाथ भालेराव

डाॅ.विश्वनाथ किशन भालेराव हिंदी विभाग प्रमुख, शिवाजी महाविद्यालय,उदगीर 413517 जि.लातूर (महाराष्ट्र) मोबा.9922176988 ई-मेल: [email protected]