कविता

चार लघु कवितायेँ

(1)
मोहभंग आक्रोश की
इस घडी में
आइए
सिध्दार्थ, कबीर की
तरह समाज धर्म की
बुरी विचारधारा पर
प्रहार करें।

(2)
कलम से कागज पर पंक्तियों से
करना चाह तुझे स्पर्श
लगाना चाहा हृदय से
हृदय भी काँप उठा
तन की हर जगह पर
भावना का राज छिपा
करना चाह पूरा स्पर्श
कागज भी अधूरा था
मेरे हृदय के आँचल से
उतारना चाह तेरी तस्वीर
किन्तु रेखाओं में बंदिस्त न रही
करना चाहा पूरा सफर
मंजिल ही अधूरी थी।

(3)
संस्कृति के चंगुल में
कैद होती गई
बुध्दिजिवियों की तपस्या
साधना करके भी
तथागत आज
सत्य कहने का
साहस नहीं करता।

(4)
फूल से पहले कलि थी
काटों के बीच पली थी
करती थी साज श्रृंगार
बगीचे में रहती थी।

माली ने पाला-पोसा
खिलने से पहले ही
तोड डाला स्वार्थ ने
न खुशबू, न यौवन का विकास
मुरझा गई जिन्दगी
आँचल के बीच

डॉ. विश्वनाथ भालेराव

डाॅ.विश्वनाथ किशन भालेराव हिंदी विभाग प्रमुख, शिवाजी महाविद्यालय,उदगीर 413517 जि.लातूर (महाराष्ट्र) मोबा.9922176988 ई-मेल: [email protected]