कविता – मैं डॉक्टर नारंग बोल रहा हूँ
मैं स्वर्ग से डॉक्टर नारंग बोल रहा हूँ
एक यक्ष प्रश्न लिए मैं डोल रहां हूँ
मुझको भी तो भीड़ ने पीटा था
बीच सड़क बेरहमी से घसीटा था
पर मेरे लिए तो कोई शोर नही मचा
मुझे किस गुनाह की मिली थी सजा
मेरी मौत और उसकी मौत में बतला दो अंतर
क्यो मेरे लिए कोई नही गया जंतर मंतर
हिन्दू हूँ ,क्या यही मेरा गुनाह है
इस प्रश्न के उत्तर की चाह है
कुछ लोग कहेंगे मैं गंगा जमुनी तहजीब में
साम्प्रदायिकता का जहर घोल रहा हूँ
क्या करूँ डॉक्टर नारंग हूँ
मैं स्वर्ग से बोल रहा हूँ
— मनोज “मोजू”