गुरु
गुरु कोई व्यक्ति (individual) नहीं है ,मानवीय काया (human body )या व्यक्ति विशेष नहीं . यह निराकार सत्ता(Formless power )है.
निराकार गुरु ही साकार रूप में चराचर विश्व के हर प्राणी में विद्यमान है.
शैशवावस्था ( Infantilism ) में माता अपनी संतान को जगत से प्राथमिक परिचय ( initial introduction )कराती है अत: वह बालक की प्रथम गुरु होती है
मां की वृद्धावस्था में उसका पुत्र मां को कई नई चीजों के बारे में बताता है
इस प्रकार अपनी मां का मार्गदर्शक (guide) बन जाता है
कई बार जिस शिक्षक ने अक्षर ज्ञान कराया होता , वह शिष्य उच्च पद पर आसीन होने के बाद शिक्षक का मार्गदर्शक हो सकता है सहायक हो सकता है
गुरु शब्द खोखले अहंकार (ego ) या प्रतिष्ठा (prestige) का घोतक नहीं है
पूरी प्रकृति (Whole Nature ) गुरु है
पृथ्वी धैर्य (patience) सिखाती है
पुष्प प्रसन्नता ( cheerfulness ) का पाठ पढ़ाते हैं
जल शीतलता (Calmness ) की सीख देता है
वायु निरंतरता(Consistency) का मार्ग बताता है
अग्नि ऊष्मा और ऊर्जा (energy) को दर्शाते हैं
आकाश निर्लिप्तता (detachment) का संदेश प्रसारित करता है
श्रेष्ठ गुरु वह है जो हमारे भीतर स्थित गुरु को जागृत कर दे.
हमारे भीतर ही ज्ञान- कस्तूरी है
भाव भंडार है , अमृत-घड़े है
गुरु मन और आत्मा पर पड़े अज्ञान की चादर को हटाकर हमें ज्ञानवान और संपूर्ण बनाते हैं
गुरु हमें तुच्छ और दुनियावी जुगनू से उपर 16 कलाओं से युक्त दिव्य चंद्रमा बनाते हैं
गुरुपूर्णिमा का यही मर्म है::::::::::: जय गुरुदेव
###गौतम कुमार सागर. 9.0 7. 2 01 7