तुमसे मिलने की घड़ी आ रही है
मेघ से भू पर बूंदों की झड़ी आ रही है।
मानों तुमसे मिलने की घड़ी आ रही है।।
ये बादल घटाएं और व्याकुल बिजलियाँ
है रखे हुए सिर पर जल की गगरियाँ
है बहने लगी अब तो पवन मदभरी
लगे सागर से मिलकर अभी आ रही है।
मेघ से भू पर बूंदों की झड़ी आ रही है
मानों तुमसे मिलने की घड़ी आ रही है।।
सप्त दादुर ने भी अपना इक राग छेड़ा
नृत्य करने लगे झूमकर मोर बनाकर के घेरा
दहके उपवन की कलियाँ ऐसे गुनगुनाने लगी
ज्यों प्रिय मिलन की कोई कहानी कही जा रही हैं।
मेघ से भू पर बूदों की झड़ी आ रही है
मानों तुमसे मिलने की घड़ी आ रही है।।
बैठ झूले पे सखियाँ सावन गाने लगीं
डूबती मैं भी सपनों में गोते लगाने लगी
याद आने लगा तू इस तरह से सजन
मानों बेसबर धड़कन अब तो रूकी जा रही हैं।
मेघ से भू पर बूंदों की झड़ी आ रही है
मानों तुमसे मिलने की घड़ी आ रही है।।
— गुंजन गुप्ता