“पिरामिड”
(1)
ये
हवा
बदरी
पुरवाई
चितचोरना
आलस छाया है
मौसम बौराया है॥
(2)
छा
रही
बदरी
वर्षा ऋतु
काली घटा है
सजन कहाँ है
बादल गहराया॥
(3)
हे
तुम
निर्मोही
भूल गए
घर बखरी
भौंरा बन घूमें
मन सौतन लागे॥
(4)
ये
मैना
भीगे है
घोसले में
फड़फड़ाए
कहाँ उड़ पाए
चोंच चूजे लड़ाती॥
(5)
वो
भरे
तालाब
लबालब
सरोवर है
तैरता समुन्द्र
उफनती नदिया॥
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी