मजदूर किसान
हाँ,
मैं वक्त से पहले जवान हो गया था ।
मैं समझने लगा था,
दुनियादारी की बातें,
घाटे फायदे का ज्ञान,
रोजाना,ठेका मे अंतर ।
उस उमर में,
जिस उमर में तुम सीख रहे थे,
ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार।
मैंने यह भी सीख लिया था ,
किस नखत मे लगता है केला ,
और किस नखत में धान ।
आज तुम ढल रहे हो,
पाले हुए शरीर में,
अनगिनत रोग ,
दवाओं के बोझ के तले फँसी साँसो के टुकड़े।
मैंने भी पाल रक्खे हैं,
गाय ,भैंस, बछड़े,
मैं भी ढोता हूँ,
गेहूँ ,धान, के बोझ ,
तुम्हारें जोड़ो मे दिन भर दर्द होता है ,
और मेरे जोड़ो मे रात को ।
पर सत्य यह है कि, मैं वक्त के साथ कम बूढ़ा हुआ हूँ,
मैं अब भी थोड़ा जवान हूँ ।
तुम शहर के अफसर हो ,पूँजीपति हो
मैं गाँव का मजदूर हूँ,
खेतिहर किसान हूँ ।
—–© डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी