ब्लॉग/परिचर्चा

सकारात्मकता का प्रचार प्रसार

राहुल कीर्ति महाविद्यालय का छात्र था । अपने आप में ही सिमटा सा रहनेवाला राहुल अंतर्मुखी स्वभाव का था । कॉलेज से उसके घर की दूरी लगभग आठ किलोमीटर थी जिसे वह रोजाना सरकारी बस की भीड़ में धक्के खाते हुए पूरी करता । पाठ्यक्रम का अभ्यास करने के बाद समय मिलने पर वह अपने मोबाइल पर कुछ समाचार वगैरह देखने के बाद नायाब लेखकों के लेखों से सुसज्जित नवभारत टाइम्स में ‘ अपना ब्लॉग ‘ देखना नहीं भूलता । अपना ब्लॉग के कुछ चुनिंदा लेखक उसके आदर्श थे जिनकी रचनायें वह अवश्य पढ़ता लेकिन अपना ब्लॉग में सबसे ज्यादा रचनायें लिखने का गौरव प्राप्त करनेवाली एकमात्र रचनाकार व सकारात्मक ,प्रेरणादायक कहानियों की बेमिसाल सृजनकर्ता आदरणीय लीला बहनजी की रचनाओं से वह खासा प्रभावित था ।  आज उसने ‘ खुशियां बांटने से बढ़ती हैं ‘बहनजी का यह ब्लॉग पढ़ा था । ब्लॉग पढ़कर काफी देर तक उसके मन में यही विचार घुमते रहे ‘ खुशियां बांटने से बढ़ती हैं ‘ ।
 नित्य की भांति राहुल आज भी कॉलेज जाने के लिए बस में बैठा । अगले ही स्टॉप पर बस यात्रियों से खचाखच भर गई । बगल में खड़ी एक प्रौढ़ा आशाभरी नजरों से सीट पर बैठे यात्रियों की तरफ देख रही थी लेकिन लोग उससे अनजान रहने का नाटक कर रहे थे । अचानक राहुल को पता नहीं क्या सूझी । वह उठ खड़ा हुआ और उस महिला से बोला ” ऑन्टी जी ! आइये ! आप बैठ जाइए । “
 मुस्कुराते हुए उसकी तरफ कृतज्ञ नजरों से देखते हुए वह महिला राहुल की सीट पर बैठ गयी । आज पहली बार किसी को अपनी सीट प्रदान कर राहुल को बड़ी ही आत्मिक खुशी मिल रही थी । उसे ऐसा लग रहा था जैसे सब उसकी तरफ प्रशंसा भरी नजरों से देखते हुए उसकी तारीफ कर रहे हों ।
इसी खुशी के अहसास के साथ ही उसका पूरा दिन बड़े ही खुशगवार मूड में बीता । उसके मित्र उसके अंदर आये इस बदलाव से खुश थे । दूसरे दिन राहुल ने बस में फिर अपनी सीट एक बीमार व्यक्ति को दे दी और खुद खड़े रहकर सफर किया । अब उसके व्यवहार में काफी सकारात्मक बदलाव आ गया था । बहनजी के ब्लॉग का शीर्षक अभी भी उसके दिमाग में घूम रहा था ‘ खुशियां बांटने से बढ़ती हैं ‘ । बस उसने अगले दिन पड़ने वाले अपने जन्मदिन की ख़बर व्हाट्सएप पर अपने एक मित्र से साझा किया । शाम होते होते उसके कई मित्रों के बधाई संदेश उसके व्हाट्सएप नंबर पर आ चुके थे । इन बधाई संदेशों को पढ़कर उसकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा । उसके दिमाग ने सरगोशी की ‘ बहनजी ने गलत नहीं लिखा था सचमुच खुशियां बांटने से बढ़ती हैं ।
 अगले दिन राहुल ने अपने सभी मित्रों को ‘ सुप्रभात ‘ का संदेश देते हुए उनका शुक्रिया अदा किया । उसके मित्र भी अब उससे बहुत खुश थे । अपने आप में गुमसुम सा रहने वाला राहुल अब अपनी खुशियां उनसे साझा जो कर रहा था । व्हाट्सएप पर सुप्रभात व बधाइयों से शुरू हुआ सिलसिला अब ज्ञानवर्धक रचनाओं के साझाकरण का केंद्र बन गया । परिणामस्वरूप राहुल का सामान्य ज्ञान भी अब पहले की अपेक्षा काफी बेहतर हो गया था । मित्र आपस में किसी मुद्दे पर आपस में बहस भी कर लेते और अच्छी अच्छी चीजें आपस में साझा भी कर लेते ।
अब राहुल का  ज्यादा समय  खुशियां बांटने के बहाने ढूंढने में बीतने लगा । किसी की कहीं भी किसी भी तरह से मदद करने में उसे आनंद आने लगा ।
तभी बहनजी के ही आशीर्वाद व प्रेरणा से लेखक बने श्री रविंदर भाई के ब्लॉग पर राहुल ने ‘ उसकी कहानी ‘ की सभी कड़ियाँ पढ़ी । उसका तो सोचने का नजरिया ही बदल गया । अब वह अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अध्यात्म से भी जुड़ चुका था । जहां रविंदर भाई जी की रचनाएं पढ़कर उसके मन को अपार शांति मिल रही थी वहीं खुशियां बांटते हुए वह खुद भी खुशियों से सराबोर हो चुका था ।
बहनजी के ही ब्लॉग्स पर पूर्व में प्रकाशित रचनायें पढ़कर गुरमैल भाई जो कि लंदन में रहते हैं के बारे में जानकारी हुई । बहनजी उनके बारे में भी यदाकदा अपने ब्लॉग में लिखते रहती हैं और उस माध्यम से वह उनके बारे में जितना समझ पाया उससे वह गुरमैल भाईसाहब से भी काफी प्रभावित हुआ । उनके जैसी ही जीवटता व साहस का प्रदर्शन करने का वह मन में ठान चुका था । उनसे ही प्रेरित होकर वह कुछ अच्छे सुंदर विचार अपने व्हाट्सअप पर लिखने लगा । मित्रों द्वारा उत्साहवर्धन किये जाने पर लिखने के प्रति उसकी रुचि और बढ़ने लगी और आज तो उसकी खुशी और हौसले और बुलंद हो गए जब उसके द्वारा लिखे गए एक लेख को कॉलेज की वार्षिक पत्रिका में जगह मिली और समीक्षकों की वाहवाही ।
 आनन फानन उसने बहनजी के सकारात्मक विचारों की पैरवी करते सुंदर लेखों की जी भरकर तारीफ अपने व्हाट्सएप पर कर दिया । अब वह यही सकारात्मकता पूरी दुनिया में जो फैलाना चाहता था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।