दे दो खाना
दे दो इन बच्चों को खाना न तरसने दो
बिन मातपिता के है सारे न बिलखने दो
रहते सब संकोंचों में कह न सके कुछ भी
उनको दिलवा कर के शिक्षा सम्हलने दो
ऊँचा उठने दो छूने दो नभ को फिर से
तकदीर जरा इनकी अब आज सँवरने दो
है कोमल फूलों से नादाँ न सताओ अब
बातें उनकी सूनो समझो न झिझकने दो
बढ़ती महंगाई पूरे हो न सके खर्चा
लायक बन जाये वो पैसा अब कमने दो
वापस फिर लोटे कैसे बचपन के वो दिन
मन में बसती बगियाँ को तुम न उजड़ने दो