हे भारत देश!
हे भारत देश! हे असीम अशेष!
तुम्हें कोटि-कोटि, वंदन है…वंदन है…।
कश़्मीरी सौंदर्य से, उन्नत माथा है।
रग-रग में, वीरगाथा है ।
हे सुख-शांति के भेष!
तुम्हें कोटि-कोटि, वंदन है….वंदन है….।
कल-कल बहते, गंगा-जमुना के नीर।
विंध्य अरावली भाते, हिन्द-अरब के तीर।
हे बंगाल रत्नेश!
तुम्हें कोटि-कोटि, वंदन है….वंदन है….।
धान-गेंहूँ की बाली, मुट्ठी में खेतिहर के।
चुड़ी वाले हाथ हैं, चना और अरहर के।
हे मानसूनी परिवेश!
तुम्हीं कोटि-कोटि, वंदन है….वंदन है…..।
श्रम की भुजाएँ, माथे में स्वेद ।
तनी हुई छाती, लहू नहीं सफेद ।
हे नूतन भोर के दिनेश!
तुम्हीं कोटि-कोटि, वंदन है….वंदन है….।
ताऱिफ-ए-रब़, पाक़ कुर आ़न है।
चार वेद यहाँ, अट्ठारह पुराण है।
हे कुरुक्षेत्र के गीतेश!
तुम्हीं कोटि-कोटि, वंदन है….वंदन है…..।
सर्वत्र रहती आस्था, संस्कृति का सिरमौर ।
रीति-नीति की खान, सभ्यता का ठौर ।
हे मानवता के संदेश!
तुम्हें कोटि-कोटि, वंदन है….वंदन है…..।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”