“गजल”
मापनी-2122,2122,212
ख्वाब आँखों में दिखा तो भा गया
मौसम बिना बादलों के आ गया
याद तेरी थी घिरी घर छा गई
नैन मेरे खुल गए तक ता गया॥
खूब थी वो रात आ ढ़लने लगी
भोर का है कारवाँ चलता गया॥
लोग भी आकर मिले पादान पर
पर न थी रौनक गिला बढ़ता गया॥
एक दिन वह शाम जब ढलने लगी
दिख गया उनका महल कहता गया॥
क्या हुआ क्योंकर हुआ बदरंग यह
जो खिला था नूर क्यों गिरता गया॥
‘गौतम’ उमड़ कर जब चली है हवा
वक्त का है शोर उठ समता गया॥
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी