कविता

जब दिन ढले 

रक्त लालिमा के
भाल पटल पर
सिन्दूरी स्वप्न के
अनगिनत दीप
लह – लह कर जले
जब दिन ढले
शांत नभ के आगोश में
शीत समीर के झोंके
करे स्मृतियों का बिंब सृजन
तम की गुफाओं में
आकाश राजा के उर में
धरती रानी के लिये
प्यार के पुष्प खिले
जब दिन ढले
नीड़ में से झांके बच्चे
कितने भोले कितने सच्चे
दाने को चोंच में भर
एक तिनका पांव में पकड़
चिड़िया अपने घर को चले
जब दिन ढले
विश्वास की दीप्ति नवल
आशा उम्मीद उज्ज्वल
प्रेयसी के नयनों से
प्रेम अश्क झर – झर गिरे
फिर आलिंगन में प्रेमी की
वो रात फले और फूले
जब दिन ढले
पतझड़ के बाद
सावन सुरंगे में
दो भूले – बिसरे
हंसों का जोड़ा फिर मिले
किसी गुलमोहर के तले
जब दिन ढले
काम में थककर
पसीने का समंदर बहाकर
जब देखे मजदूर
सूर्य अस्ताचल को
मन में उनके
इक नया ख्वाब पले
जब दिन ढले

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]