पाजेब
जब खनकती थी
तेरे पांव की पाजेब
तो लगता था मुझे
जैसे दिल के गर्भगृह में
किसी ने छिड़क दिया हो
गंगाजल और मिट गये हो
सारे पाप और धुल गया हो
सांसर सागर की
द्वेष भावनाओं का मल
जब-जब कानों में पडती थी
तेरे पाजेब की वो रुनझुन प्रिये !
लगता मुझको जैसे
धमनियों में रक्त की जगह
दौड़ने लगा हो इश्क़ का इत्र
मीलों दूर तू होती तेरे नुपूर
तुझको हरपल मेरे पास पाते
लेकिन विद्रूप है आज ये समय
जहां से नहीं आती तेरे पाजेब की
वो खनक जो मेरे प्राणों के लिए
सांस का काम करती थी।