कविता

पाजेब 

जब खनकती थी
तेरे पांव की पाजेब
तो लगता था मुझे
जैसे दिल के गर्भगृह में
किसी ने छिड़क दिया हो
गंगाजल और मिट गये हो
सारे पाप और धुल गया हो
सांसर सागर की
द्वेष भावनाओं का मल
जब-जब कानों में पडती थी
तेरे पाजेब की वो रुनझुन प्रिये !
लगता मुझको जैसे
धमनियों में रक्त की जगह
दौड़ने लगा हो इश्क़ का इत्र
मीलों दूर तू होती तेरे नुपूर
तुझको हरपल मेरे पास पाते
लेकिन विद्रूप है आज ये समय
जहां से नहीं आती तेरे पाजेब की
वो खनक जो मेरे प्राणों के लिए
सांस का काम करती थी।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]