मुझे पता था
मुझे पता था
एक दिन बंद कर दोगे
मेरे जबान को
जिस दिन मै
अपनी आवाज उठाऊगी
नही कहने दोगे मेरी बात
इसी कारण तो लूट कर अस्मत
घूमते फिरते हो शहर बाजारो मे
और मै लाचार, असहाय
एक-एक दिन घुट-घुट कर जीती हूं
इसका कारण तुम
और तुम्हारा हैवानियत हैं
उपर से ये समाज
हमे ही दोषी ठहराता हैं
इन शिकारीयो को
यूं ही विचरने को छोड़ देता हैं
लेकिन अब नही होगा
तुम्हारा ये अत्याचार
मै अब अबला नही
जो तुमसे डर जाऊँगी
तुम्हारे मूंह बंद करने से
चुप बैठ जाऊँगी
अब अपनी आवाज को
भरी सभा मे भी उठाऊगी
दिलाऊंगी तुम्हे सजा
तुम्हारे किये हुये कारनामो का।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’