कविता

सात सात एक सात

07/07/17
सात सात एक सात
फिर आई तेरी याद
वो जो चले थे एक साथ
हल्की अंधेरे में सुप्रभात
कैसे भूलेंगे ये बात
कटती नहीं है दिन -रात
जुंबा पर आती है तेरी बात
अब तो आ जाओ न मेरे साथ
कब तक रहोगी तुम उदाश
मान जाओ न मेरी बात
अरसे बीते , बीत गयी वो रात
चले नहीं हम साथ-साथ
फिर से करते हैं अपनी शुरूआत
दे दो मेरे हाथ में अपना हाथ
चलते है फिर एक साथ
याद रखेंगे सात सात एक सात
से बनी है अपना साथ….।।
कविराज.. संतोष कुमार वर्मा

संतोष कुमार वर्मा

हिंदी में स्नातक, परास्नातक कोलकाता, पश्चिम बंगाल [email protected]