लघुकथा

कोशिश

“माँजी! मन तो हमारा भी नहीं कर रहा कि आप लोगों को छोड़ कर जाएँ लेकिन…..” अपनी बात अधुरी ही छोड़ तनु, पुरू को साथ ले माँ के चरणों में झुक गयी।
“मैं समझ रही हूँ बेटी। हमें भी तुम्हारी कमी खलेगी और पुरू के बिना तो बहुत सूना-सुना लगेगा।”

माँ की नम आँखें और पिता की ख़ामोशी, वह भली-भाँति समझ रहा था लेकिन नौकरी के चलते उसका विदेश जाना मजबूरी बन गया था।

“अरे दादी आप उदास क्यों होती हो, मैं रोज वीडियो कॉल करूँगा न आपको।” नन्हा पुरू हँसते हुए कह रहा था। “और हम जल्दी ही लौट भी आएंगे न, कोई ज्यादा दूर थोड़े ही है इटली।”

“हाँ ठीक ही तो कह रहा है हमारा पुरू।” सुबह से चुप्पी साधे पिता पहली बार बोले थे। “इस हाई टेक जमाने में ये मीलों की दूरियां भला क्या मायने रखती है, बस मन के तार जुड़े रहने चाहिए।” अपनी बात कहते हए उन्होंने पुरू के हाथ में एक छोटा सा पौधा रख दिया था। “लो बेटा ये छोटा सा ‘गिफ्ट’ तुम्हारे लिये!”

“अरे बाबा ऐसे ‘प्लांट’ भी कोई गिफ्ट देता है क्या?”

“हाँ बेटा हम दे रहे है न तुम्हे। ये छोटा सा पौधा तुम अपने नए घर में जा कर लगा देना और जब वर्षो बाद ये खूब बड़ा हो जाएगा न, तब ये तुम्हे बाबा की तरह ही छाँव और प्यार देगा। पता नही, तब हम साथ होंगे भी या नहीं!”

पुरू तो बच्चा था लेकिन वह सहज ही पिता के मन के भावों को समझ गया। “पिताजी मैं वहां जा कर पूरी कोशिश करता हूँ न, आप लोगों को बुलाने……!

“बेटा, जीवन इतना सरल नही होता जितना दिखाई देता है।” पिता ने उसकी बात बीच में ही काट दी थी। “कभी-कभी इन कोशिशों में ही पूरा जीवन गुजर जाता है पर हम कामयाब नही हो पाते। बस रख सको तो हमारे अकेलेपन के अहसास को अपने मन में ज़िंदा रखना बेटा।”
पिता की आखों में आई नमी के बीच उनका दर्द भी उभर आया था। बरसों पहले गाँव छोड़, शहर आ बसने के बाद कभी गाँव न लौट पाने का दर्द, और न ही कभी चाहकर भी ‘दादा-दादी’ को साथ ला कर शहर में रख पाने का दर्द…….

“अब बारी मेरी है एक कोशिश की” सोचते हुए वह पिता के चरणों में झुक गया।

विरेन्दर 'वीर' मेहता

विरेंदर वीर मेहता जन्म स्थान/निवास - दिल्ली सम्प्रति - एक निजी कंपनी में लेखाकार/कनिष्ठ प्रबंधक के तौर पर कार्यरत। लेखन विधा - लघुकथा, कहानी, आलेख, समीक्षा, गीत-नवगीत। प्रकाशित संग्रह - निजि तौर पर अभी कोई नहीं, लेकिन ‘बूँद बूँद सागर’ 2016, ‘अपने अपने क्षितिज’ 2017, ‘लघुकथा अनवरत सत्र 2’ 2017, ‘सपने बुनते हुये’ 2017, ‘भाषा सहोदरी लघुकथा’ 2017, ‘स्त्री–पुरुषों की संबंधों की लघुकथाएं’ 2018, ‘नई सदी की धमक’ 2018 ‘लघुकथा मंजूषा’ 2019 ‘समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशस्त्र’ 2019 जैसे 22 से अधिक संकलनों में भागीदारी एवँ किरदी जवानी भाग 1 (पंजाबी), मिनी अंक 111 (पंजाबी), गुसैयाँ मई 2016 (पंजाबी), आदि गुरुकुल मई 2016, साहित्य कलश अक्टूबर–दिसंबर 2016, साहित्य अमृत जनवरी 2017, कहानी प्रसंग’ 2018 (अंजुमन प्रकाशन), अविराम साहित्यिकी, लघुकथा कलश, अमर उजाला-पत्रिका ‘रूपायन’, दृष्टि, विश्वागाथा, शुभ तारिका, आधुनिक साहित्य, ‘सत्य की मशाल’ जैसी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। सह संपादन : भाषा सहोदरी लघुकथा 2017 (भाषा सहोदरी), लघुकथा मंजूषा 3 2019 (वर्जिन साहित्यपीठ) एवँ लघुकथा कलश में सम्पादन सह्योग। साहित्य क्षेत्र में पुरस्कार / मान :- पहचान समूह द्वारा आयोजित ‘अखिल भारतीय शकुन्तला कपूर स्मृति लघुकथा’ प्रतियोगिता (२०१६) में प्रथम स्थान। हरियाणा प्रादेशिक लघुकथ मंच द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता (२०१७) में ‘लघुकथा स्वर्ण सम्मान’। मातृभारती डॉट कॉम द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता (२०१८) ‘जेम्स ऑफ इंडिया’ में प्रथम विजेता। प्रणेता साहित्य संस्थान एवं के बी एस प्रकाशन द्वारा आयोजित “श्रीमति एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान” 2018 (कहानी प्रतियोगिता) और 2019 (लघुकथा प्रतियोगिता) में प्रथम विजेता।