बरसो मेघ
सावन आया
पर मेघ न आये
आंखें बरसीं किसान की
पर मेघ न बरसे
किसान का पेट भूखा
पड़ा खेत सूखा
मेघ फिर भी न तरसे
आ जाओ मेघ
धरा की प्यास बुझाने
प्रकृति का श्रृंगार करने
पुकार रहा है तुम्हें
प्यासा कंठ धरा का
जिसमें कभी धार बहती थी
मैं कुंआ, मैं नदी, मैं झरना
हमारे कंठों की प्यास
बुझा दो
बरसो मेघ, बरसो
— नवीन कुमार जैन