कुदरत का कहर
वर्ष 2013 की आपदा पर लिखी मेरी कविता
कुदरत का कहर बरस गया
प्यारा पहाड़ खण्ड-खण्ड हो गया
देवभूमि की दशा दयनीय कर गया
नदियों को विकराल रूप दे गया
गंगा का ऐसा रौद्र रूप कर गया
शिव की मूर्ति भी समा ले गया
सैकड़ों जाने एक पल में ले गया
चिडिय़ों की चहचहाट ले गया
पशुओं का आवास ले गया
मानव की तो मत पूछो
सैकड़ों घरों के चिराग ले गया
प्यारी सुबह की हवा ले गया
शाम और दोपहर ले गया
कुदरत का कहर बरस गया।।
जीवन राज