“गज़ल”
मापनी- 2122 2122 212…..
बेरुखी को भी निभाना चाहिए
हो सके तो पास जाना चाहिए
क्या पता वो बिन पढ़ी किताब हो
खर खबर उनको सुनाना चाहिए।।
बाँचकर मजमून अपने आप से
बेवजह नहिं खौफ खाना चाहिए।।
पूछ लो शायद वे अति अंजान हों
हर शहर को घूम आना चाहिए।।
यदि दिखे हँसती अमीरी दूर से
वक्त को भी मुस्कुराना चाहिए।।
लोग हैं की भाप लेते दिल जिगर
कोहिनूर मिला सजाना चाहिए।।
सोच तो ‘गौतम’ बहुत पछताएगा
आदमी से मन मिलाना चाहिए।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी