लघु कथा : भूख
‘बाबू जी बच्चा सुबह से भूखा है। दूध के लिए दस रुपया दे दो।’ एक दुबले पतले बच्चे को गोद मे लिए उस मैली कुचैली औरत ने कहा।
‘नहीं मैं रुपया तो नहीं दूँगा। तुम चाहो तो बच्चे को खिलाने के लिए बिस्कुट दिलवा सकता हूँ।’ व्यक्ति ने अपनी सूझबूझ दिखाते हुए कहा।
‘ठीक है आप खाने के लिए ही कुछ दिलवा दो।’ कह कर वह व्यक्ति के पीछे पीछे हो ली।
दुकान पर पहुँच कर व्यक्ति ने पांच रुपये का एक बिस्कुट का पैकेट खरीदा और बच्चे की तरफ बढ़ाया। बच्चे के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। फिर न जाने क्या सोच कर व्यक्ति ने बिस्कुट का पैकेट खोल कर बच्चे की तरफ़ बढ़ाया। बच्चा खिलखिला उठा। उसने बिस्कुट का पैकेट लपक लिया और झट से एक बिस्कुट निकाल कर खाने लगा। अब दुकानदार के चेहरे पर भी मुस्कान थी। औरत का चेहरा निष्प्रभाव था। वह ढीले कदमों से आगे बढ़ गयी।
दुकानदार ने व्यक्ति से कहा, ‘भाई साहब! आपने बहुत अच्छा किया, जो बिस्कुट का पैकेट खोल कर दिया। नहीं तो वह चार रुपए में वापस मुझे ही दे जाती।’
व्यक्ति चिंतन में डूब गया ‘पेट की भूख बड़ी है या पैसे की भूख?’
— विजय ‘विभोर’