चंद पंक्तियाँ
हर शाम का इंतज़ार करती हो तुम इस कदर
जैसे पंछी की उड़ान होती है घोंसले की तरफ़
तुम्हारी हर बात नासिका में गंध भर देती है
लगता है कि तुमने पुरानी शराब चढ़ा रखी है
जब भी शुक्रिया अदा कर लेते हो
जैसे खुद से दरकिनार कर देते हो
ज़िंदगी इतनी ख़ूबसूरत होने लगी है आज
कमबख्त मौत भी शरमाने लगी है आज
— पंकज त्रिवेदी