मौजूदगी
न जाने कितनों दिनों से
बारिश का कहर, बाढ़ का पानी
अंदर बाहर बाढ़ !
तुम्हारा भीतर से यूँ बह जाना
अनिवार्य लगता है कभी कभी !
अच्छा है तुम औरत हो !
मगर मेरी आँखें डबडबाई हुई सी
बहने से रोकती है मगर ऐसा भी हों
बाँध का सब्र टूट जाएं और …
अरे ! सुनो तो –
आज थोड़ा सा बुखार है,
ज्यादा नही, चिंता न करो.
ऐसा लगता है –
जीवन थम सा गया है
मगर दिल का धड़कना
तुम्हारी मौजूदगी तो है !
— पंकज त्रिवेदी
24/07/2017