साया
पिछले कितने ही समय से तान्या की उदासी विपिन से देखी ही नहीं जा रही थी पिता को खोने के सदमें के कारण वो अपने आपको भी दर्द में डूबा चुकी थी कई बार विपिन ने समझाया “तान्या अब तुम खुद समझदार हो जीवन मरण तो चक्र है तुम ऐसे ही खोई खोई सी रहोगी तो बच्चों की मानसिक स्थिति भी खराब होगी तुम्हारा स्वास्थ्य भी।”
“मैं क्या करूं मुझे ये गम खाये जा रहा है।”
विपिन ने एक कोशिश की कि तान्या को इस गम से उभारने की।
आंगन में अशोक का पौधा लहलहा रहा था तान्या को एक बारी यही लगा पिता का साया उसके सर पर फिर से “ओह विपिन तुमने मेरी मन मांगी मुराद पूरी कर दी।”मन आंगन में पिता के हमनाम पौधे ने खुशियों की खुशबू बिखेर दी।
— अल्पना हर्ष