फ़कीरों की बस्ती
मैं फ़कीरों की बस्ती में कहीं जा पहुंचा
न जाने फिर क्यूं हंगामा खड़ा हो गया
मंदिर की घंटी बजते ही लोग मुड़ जाते
ईश्वर से हटकर वो मेरी ओर देखने लगा
नफ़रत की दीवारों में सीमेंट होती नहीं
कोमल सा दिल कब पत्थर का हो गया
बेजुबाँ को देखता हूँ मजबूरी में डूबे हुए
जब बोल देता कोई कहें हंगामा हो गया
मज़हब के रास्ते बहुत ही कठीन है यारों
मठाधिशो के नाम राजनेता जीतने लगा
— पंकज त्रिवेदी