लघुकथा

लघुकथा – अहसास

वह तमतमाता हुआ प्रिंसिपल के कक्ष में घुसा। वातानुकूलित और सुव्यवस्थित कक्ष। यह देख उसका पारा सातवें आसमान पर था। उसने प्रिंसिपल साहब को बहुत कुछ सुना दिया। उसकी बातें ख़त्म होने पर प्रिंसिपल साहब अपनी कुर्सी से उठे और प्रोटोकॉल तोड़ते हुए उसे अपनी कुर्सी पर बैठाया। जैसे ही वह कुर्सी पर बैठा उसे एक कील चुभ गयी।

उसे वातानुकूलित कक्ष और गद्देदार कुर्सी का अहसास हो गया। अब उसे अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। वह प्रिंसिपल साहब से नज़रें नहीं मिला पा रहा था।

— विजय ‘विभोर’
27/07/2017

विजय 'विभोर'

मूल नाम - विजय बाल्याण मोबाइल 9017121323, 9254121323 e-mail : [email protected]