राष्ट्र कल्याण, कार्य महान
सुधार राष्ट्र का करना, तो सबको प्रेम से रहना।
इसी प्रेम से दुनिया तो; सभी का मानती कहना।।
हमारे इन राष्ट्रों में विरोधी, प्रेम की जात।
जाति के भेद से होती; विकास करने में रात।।
इन्हीं जाति के विघ्नों से, रुकना कार्य राष्ट्र का।
गाना पड़ता है हमको; लगाना पड़ता है नारा।।
सभी जब इन्सान हैं तो, झगड़ा क्यों मचाया है।
भगा दो वर्ग-जाति का; ये ढोंग क्यों रचाया है।।
इन्हीं ढोंगी जनों ने तो, बिगाड़े राष्ट्र जो प्यारे।
भगाना चाहिए इनको, लगाने होंगे अब नारे।।
ऊंच-नीच के भाव अब, पड़ेगा छोड़ना सबको।
तभी तो एक हो करके; सुधार करना है हमको।।
अधिकतर राजनेता भी, करते राज कुछ ऐसा।
अपने स्वार्थ के खातिर; लड़ाते सबको पशु जैसा।।
वोट की चाहत में ये, हमारी एकता नहीं सहते।
बांट कर धर्म-जाति में; इसी से स्वार्थ सिद्ध करते।।
ऋषि-मुनियों ने वर्णाश्रम, बताया जो कि वेदों में।
कार्य की सुविधा हेतु; लिखा है धर्म-ग्रन्थों में।।
पर आज तो इसका, विरोधी भाव है आया।
विरोधी भाव से ही तो; मलिन होती है यह काया।।
अब हम एक हो करके, बनायें राष्ट्र को न्यारा।
विरोधी भाव जब भागे; बनेगा राष्ट्र तब प्यारा।।
सुधार राष्ट्र का करना, तो सबको प्रेम से रहना।
इसी प्रेम से दुनिया तो; सभी का मानती कहना।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’