सीख
रमेश एक आदर्श पिता की तरह अपने इकलौते पुत्र रोहन का पालन पोषण बड़े ही उत्तम तरीके से कर रहा था । शिक्षा के लिए अच्छे स्कूल में दाखिले के अलावा रमेश उसके खान पान , लाड़ प्यार के साथ ही उसके संस्कार पर भी विशेष ध्यान देता । हमेशा अच्छी बातें , अच्छी आदतें अच्छी नसीहतें देने में कोई कोताही नहीं बरतता । रोहन भी अपने पिता रमेश से बहुत प्यार करता था ।
उस दिन स्कूल बस खराब होने की वजह से रमेश अपने स्कूटर से रोहन को स्कूल पहुंचाने जा रहा था । समय कम होने की वजह से वह कुछ जल्दबाजी में था और ऐसे वक्त चौराहे पर सिग्नल का लाल होना उसे अखर रहा था । यहां से उसे बाएं ही मुड़ना था और चौराहे पर कोई पुलिसवाला भी नहीं था । सिग्नल हरा होने में अभी 70 सेकंड शेष थे सो रमेश ने सावधानी से इधर उधर देखा और फिर बाएं मुड़कर अपने गंतव्य की ओर बढ़ चला । चौराहे से अभी वह निकला ही था कि रोहन पुछ बैठा ” पापा ! चौराहे पर तो लाल सिग्नल था । फिर आप रुके क्यों नहीं ? ” कुछ देर के बाद फिर बोला ” आप ही तो बताते हो कि हमें सभी नियमों का ईमानदारी से पालन करना चाहिए । “
अब रमेश के पास खामोशी से बगलें झांकने के अलावा क्या जवाब होता ?
नन्हें रोहन ने रमेश को सीख दे दी थी ।
आदरणीय बहनजी ! अति सुंदर व उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से धन्यवाद । आपने बिल्कुल सही फरमाया है रमेश की थोड़ी सी असावधानी से उसकी समझदारी पर प्रश्नचिन्ह लग गया और बच्चे के मन में एक सवाल छोड़ गया कि उसे नसीहतें देने वाला पिता खुद उसपर अमल क्यों नहीं करता । इसीलिए बच्चों के सामने हमेशा अपने आचरण पर ध्यान रखना चाहिए ।
प्रिय राजकुमार भाई जी, रमेश एक आदर्श पिता की तरह अपने इकलौते पुत्र रोहन का पालन पोषण बड़े ही उत्तम तरीके से कर रहा था. थोड़ी-सी लापरवाही और असावधानी ने उसकी समझदारी पर प्रश्नचिह्न लगा दिया. इस कमी को पुत्र रोहन ने पूरा कर दिया. कभी-कभी बच्चे भी अनुपम सीख दे जाते हैं. अनुशासन के प्रति जागरुक करने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.