बेचारा पापड़
आम आदमी की थाली से गायब हो रहा पापड़ ,मसालेदार से ज्यादा मुनाफेदार हो गया पापड़ । सीधे बाजार से खरीदने की आदत भागदौड़ भरी व्यस्तम जिंदगी में हो गई । पहले के ज़माने मे पापड़ बनाना हर घर मे जारी था | पापड़ के आटे मे नमक आदि का मिश्रण अनुपात किसी बुजुर्ग महिला से पूछा जाता था |वहां उनकी सलाह को सम्मान भी दिया जाता था |पापड़ के आटे को तेल लगाकर घन (लोहे के भारी हथोड़े ) से पीटा जाता था |आस-पड़ोस की महिलाये अपने-अपने घर से बेलन-पाटले लेकर आती व एक दुसरे को सहयोग करने की भावना से हाथ बटाती| पापड़ बेलते समय दुःख -सुख की बातें आपस मे बांटा करती, इसमें मन की भावना व सहयोग को अच्छी तरह से समझा जाता था | पापड़ के लोए( कच्चा आटा ) भी चखने हेतु बांटे जाते थे ,बाद मे पापड़ भी खाने हेतु दिए जाते थे, किन्तु आजकल तो हर घर मे पापड़ का बनना कम होता जा रहा है | मशीनों से बने पापड़ बाजार से लाकर खाने का चलन है |कौन मगजमारी करे ?घर मे पापड़ बनाने की । लोग बाग़ टी.वी. से ही चिपके रहते है |आसपडोस मे कौन रहता है ये भी लोग ठीक तरीके से नहीं जानते | भागदौड़ की व्यस्तम जिन्दगी मे घरों मे साँझा प्रयासों के श्रम से निर्मित कई पाक कलाए भी अपना अस्तित्व धीरे -धीरे खोती जा रही है | रोजगार हेतु आज अच्छे -अच्छे को पापड़ बेलना पड़ रहे है कि कहावत भी काफी मायने रख रही है क्योकि पापड़ बेलना मेहनत का कार्य है |
|पापड़ों के भी कई स्वाद होते है | चरका पापड़,मीठा पापड़ ,चने ,मुंग .उड़द ,मक्का ,चावल ,पंजाबी मसाला पापड़ ,चटपटा चना ,चना लहसुन ,पापड़ कतरन ,आम के रस को सुखा कर पापड़ ,आदि कई पापड़ों की बीरादरी है | अमिताभ बच्चन ने तो” कच्चा पापड़ -पक्का पापड़” के तेजी से बोलने के नुस्खे को काफी चर्चा मे ला दिया था |लोग इसे सही उच्चारण से तेजी से बोलने मे आज भी गड़बड़ा जाते है |
शादी ब्याह के पहले घरों मे पापड़ बनाये जाने का भी चलन था | शायद ये शादी ब्याह मे सहयोग हेतु आसपडोस से सहयोग लेने हेतु चर्चा का एक प्रयोग रहा हो |महंगाई के बढने से जायकेदार पापड़ों की दूरियां भोजन मे नहीं परोसे जाने से घट से गई है |पापड़ मे ओषधिय गुण भी होता है जो स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होते है | कुछ महिलाए सब्जिया महँगी होने पर पापड़ की सब्जी बनाकर परिवार को पाक कला के स्वाद चतुराई से चखा जाती है | उल्लेखनीय है की सभी बेलनों में बेलन भी महिलाओं का अपनी बात मनवाने का अचूक शस्त्र संकेत स्वरूप शुरू से ही रहा है |
वास्तव मे देखा जाये तो गावं -शहरों के घरों मे साँझा प्रयास से पापड़ बनाने का चलन कम सा हो गया है | आटा ,मसाला ,मजदूरी की लागत से बने पापड़ का बाजार भाव काफी ज्यादा होता जा रहा है। नतीजतन मध्यम वर्ग की थाली से पापड़ अब गायब सा हो गया है । कभी खाने के पहले मसाला पापड़ का आर्डर करने वालों की थाली में अब सादा पापड़ भी कम दिखाई देता है । अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाले अगर अपनी जादुई शक्ति से एक पापड़ भी तोड़ के दिखा दे तो लोग उनकी बातें मान जायेंगे । थाली में चावल ,चटनी दही ,पापड़ भी थाली की शोभा बढ़ाते आ रहे है ।यदि पापड़ के शौकीनों पापड़ न दिखे तो वे अचरज में पढ़ जायेंगे । पापड़ भले ही बाजार से खरीद कर लाये हो | पापड़ तो हर एक की पसंद होती ही है | पापड़ सब की पसंदीदा खाने की चीज है | बाजार से पापड़ लेना ही पड़ते है | क्योकि इंसान की जिंदगी भागदौड़ भरी हो गई है | पहले के ज़माने में मनोरंजन के भौतिक साधन नहीं थे | महिलाये पाक कला को ज्यादा महत्त्व देती थी | समय अभाव के कारण बाजार से पापड़ खरीद कर खाते है जो की अच्छे होते है | खैर , देखा जाए तो महिला सशक्तिकरण मे भी साँझा प्रयास के कार्य भी काफी मायने रखते है |इसमें सशक्तिकरण को बल मिलता है |आपस मे विचारों के मिलने से समस्याओं के समाधान हेतु सहयोगात्मक भावनाए प्रबल होती है |
संजय वर्मा “दृष्टि “