कहानी

पंडित

मुझे सही से याद नही ,मैंने उसे कब देखा था ।हाँ इतना जरूर पता है कि जबसे होश सम्हाला ,तबसे गाँव के हर घर में शादी ब्याह में पानी भरने का काम , आटा गूँथने का काम ,बड़ी तन्मयता से वह करता था । विदाई किसी की लड़की की हो ,अपने मुँह पर अपना फटा गमझा लगा के वह खूब रोता था ।गाँव के किसी घर में आग लगे तो बाल्टी लेकर सबसे पहले वह पहुँचता था ,और सबसे बाद में जाता था ।सरलता इतनी कि कभी किसी को न नही कहता था ,कोई भी काम हो ,सबके काम पे खड़ा रहता था ।
जाति का कहार था ,मगर लोग उसे शायद सीधेपन के कारण पंडित कहते थे ।या फिर अन्य कोई कारण रहा होगा जो मुझे नही पता ।उसके घर में सिर्फ तीन प्राणी थे,पंडित और उसके दो लड़के ।पत्नी बहुत पहले ही मर गयी थी । पंडित खुद खाना बनाता था ।कभी कभी सुबह मैं उसे किसी काम के लिए बुलाने जाता था तो ,पंडित मोटी मोटी पनेथी रोटी सेंकते  हुए मिल जाता था ।
मुझे याद है ठाकुर की बहू ने फाँसी लगा ली थी ,लाश पोस्टमार्टम गयी तो दूसरे दिन लौटी ,गर्मियों के दिन थे ।लाश इतना बदबू कर रही थी की कोई पास खड़ा नही हो रहा था ,चितास्थान तक तो लाश के वास्ते की गाड़ी ले आई थी, मगर असली समस्या ये आई कि लाश को कफन मे कौन लपेटे और चिता पर कैसे रखा जाये।नाक नही दी जा रही थी । तब वही सरल व्यक्ति पंडित अपना वही फटा गमछा मुँह पर लपेटकर आया ,लाश को कफन में लपेटा और गोद में उठाकर चिता पर रख दिया ।
पंडित के बड़े लड़के को दमा की बीमारी थी ,बिरादरी में कोई शादी करने को तैयार नही था । तब मेवालाल गड़रिया ने बीस हजार लेकर कहीं से शादी करवा दी ,उस बीस हजार के चक्कर में पंडित का एक बीघा खेत भी बिक गया था ।
मगर इससे भी बुरा तो ये हुआ कि बहू पूरी कुल की कुदाल निकली ,रोज झगड़ा करती थी ।
सब कुछ जैसे तैसे चल रहा था ,मगर एक दिन पंडित के लड़के को खाँसी के साथ खून की उल्टी आई ,जैसे तैसे अस्पताल ले गये ।डाक्टरों ने भर्ती कर लिया ,फेफड़ो में पानी आ गया था ,पता चले उसे टीबी थी ,एक हफ्ते बाद लड़का मर गया ।
मैंने देखा पंडित उसी उदासीन भाव से अपने लड़के की चिता तैयार कर रहा था ,जैसे दूसरों की किया करता था । एक रोज पंडित मेरे यहाँ काम करने आया था ,खेत मे सिर्फ मैं और  पंडित  था ,पता नही कैसे लड़के की मौत का प्रसंग आ गया ।पंडित रो रो के कहने लगा :- का रोइत ?
गाँव वाले यहै सोंचिन होइहै कि पंडितवा कत्ता निठुर है ,जवान लरिका मरा एक आँस नाय फूट ।
तुमहे बताव महराज ! जो हम जमीन बेचि का लरिकवा के इलाज मा लगाइ दीत तौ चहै बचि जात ,लेकिन हम जमीन बेचि कै डाइन लायका घरे बैठाइ दीनेन।
लरिका का सही से जियय नाय देत रहै ,पहिल तौ रोगी दोसरे रोजै कै झगड़ा ।
नीक भा भगुवान उठाइ लिहिन ,रोज के नरक से छुट्टी पाइस बेचारा।

एक दिन शाम को पंडित आया ,कहने लगा- ,महराज एक काम बनाय देव, परसाद ,पंचामृत बना धरा है, खराब होइ जाई।शुकुल महराज कहत हैं कि तबेत खराब है ,हम न जाय पाइब ।
कोइ दुसरे का बुलाय लेव ,अब हम कहाँ जई?
बाँभन विशुन सब बराबर ,चहै शुकुल महराज होइ चहै भैया तुम ।
मैंने मन ही मन सोचा ,अरे पगले सब तेरी तरह निःस्वार्थ नही होते ,
शुकुल महराज क्यों जाये ,तू कौन मोटी दक्षिणा दे देगा ?
मैने कहा तुम जाओ ,लोगो को बुलाओ, मैं आता हूँ ।
वहाँ पहुँचा तो पता चला कि, पंडित की विधवा बहू रोज दूसरा घर करने की धमकी देती थी ।इसीलिए सत्यनारायन कथा करवा के उसे छोटे वाले लड़के के साथ दूसरा घर करवा रहा है ।
मैंने गौरी गणेश की पूजा करवा के,हवन जलवा के सात भाँवरे डलवा कर ,सत्यनारायन कथा सुना दी ।
पंडित ने चलते वक्त मुझे अपने फटे गमझे के कोने में से पाँच रूपये खोल कर दक्षिणा दी ,और बड़ी श्रद्धा के साथ पाँवो मे लोट गया ।मैंने सोचा कि काश मेरे वश में होता तो मैं तुझे राजा होने का वरदान दे देता ।

मैं लखनऊ पढ़ाई करने चले आया था ।कुछ दिन बाद गाँव गया तो पता चला कि पंडित की बहू को बड़े आपरेशन से लड़की हुई है ,और इलाज आपरेशन के खर्च में उसकी बची हुई जमीन भी बिक गयी ।
*
कुछ दिन बाद फिर घर गया तो देखा पंडित बड़ी मलीन मुखमुद्रा मे दुआर पर बैठा था ।
अम्मा ने बताया कि बहू रोज झगड़ा करती थी , लड़का परेशान होकर छः महीने पहले कहीं भाग गया था ,तबसे लौटा ही नही।
पिछले पंद्रह दिन से गायब है ,लोग कह रहे हैं कि किसी के साथ भाग गयी ।
इस बेचारे को दो जून की रोटी तक नही मिल रही थी ।कहीं जाता भी नही था ,पिछले चार पाँच दिन से राशन भी नही था ।भूखा लेटा रहता था ।
तुम्हारे पापा बुला लाये हैं ,कहें हैं यही रहो ।
जो गये वो अगर नही लौट सकते ,तुम क्यों प्राण तजे दे रहे हो ?
मैंने सोचा हाय भगवान इस सरल आदमी की कितनी परीक्षाएँ लेगा ।
शाम को पंडित ने मुझसे कहा कि ,भैया ! हमार जू कहत है ,छोटकवा लौंडवा जिंदा हैं, वू जू न खोइस होई।औ जैसै जानि पाई कि वा डाइन भाग गय ,पक्का लौटि आई ।
करते कराते साल बीत गया ,पंडित का लड़का नही आया ।
मेरी भी नौकरी लग गयी थी ,मैं घर गया तो पंडित के लिए नयी धोती और नया गमछा और कुर्ते का कपड़ा लेता गया , पहले तो वह उन कपड़ो को देख के खुश हुआ ,उसके बाद जाने क्या सोच के रोने लगा ,-आवाज फट रही थी ,पंडित रोये जा रहा था ,और मुझे आशीर्वाद दिये जा रहा था।

वक्त बीतता गया ,एक दिन गाँव मे आग लग गयी, राधे का पूरा लपटों में घिर गया था ।

उसकी बीबी चिल्ला रही थी ,-हाय लरिकवा अंगना मा सोवत रहै, कोई बचाव लेव ,हमारि भैया जरि जैहैं ।
पंडित ने बाल्टी फेंक दी ,हनुमान जी की तरह जलते हुए दरवाजे के बीच से निकला ,आँगन में लड़का रो रहा था ,लड़के को गोद मे चिपका कर फिर उसी दरवाजे से निकला ,पूरी पीठ जल गयी थी ,सिर के बाल भी जल गये थे ,उसके सिर पर बंधे फटे गमझे ने पूरी कोशिश की थी, मगर वह खुद जलकर भी पंडित के सिर के बाल नही बचा पाया था।
लड़के को माँ की गोद मे डाल के पंडित वहीं जमीन पर लेट गया,और इधर से उधर  लोटने लगा  ,पूरे शरीर में जलन हो रही थी,शरीर की काफी चमड़ी जल गयी थी ।लोग पंडित को मेरे दुआर पे  उठा लाये,पंडित दर्द से कराह रहा था।

पापा ने पूछा -तुमने ये क्या किया पंडित ?
पंडित ने कहा -काका!,का हमरे मेर सबके लरिका मरि जांय ?
ज्यादा से ज्यादा हम मरि जाबै,
हम जिंदै रहिकै कौन बगिया लगाइत ?
पंडित को अस्पताल में भर्ती करवाया गया ,मगर डाक्टर उसे बचा नही सके ।
जो पंडित जिंदगी भर सबकी चिता की लकड़िया ढोता रहा ,आज उसकी चिता के लिए लकड़िया इकट्ठी की जा रही थी ।
और पंडित चुपचाप मेरे द्वार पे आँखे मूँदे शाँत लेटा था ,गाँव की दो चार बूढ़ी औरतें पास बैठी उसकी नेकी बदी को याद करके रो रहीं थी ।मैंने कफन मंगा लिया था ,जला शरीर बदबू करने लगता है।मैंने सोचा, पंडित तेरा शरीर चाहे जितना बदबू करे ,वो परोपकार की यज्ञ की समिधा बना ।यह मेरा सौभाग्य होगा कि मैं तुझे कफन में लपेटूँ ।

—— © डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी

*डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी

नाम : डॉ दिवाकर दत्त त्रिपाठी आत्मज : श्रीमती पूनम देवी तथा श्री सन्तोषी . लाल त्रिपाठी जन्मतिथि : १६ जनवरी १९९१ जन्म स्थान: हेमनापुर मरवट, बहराइच ,उ.प्र. शिक्षा: एम.बी.बी.एस. एम.एस.सर्जरी संप्रति:-वरिष्ठ आवासीय चिकित्सक, जनरल सर्जरी विभाग, स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय ,फतेहपुर (उ.प्र.) पता. : रूम नं. 33 (द्वितीय तल न्यू मैरिड छात्रावास, हैलट हास्पिटल जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर (उ.प्र.) प्रकाशित पुस्तक - तन्हाई (रुबाई संग्रह) उपाधियाँ एवं सम्मान - १- साहित्य भूषण (साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी ,परियावाँ, प्रतापगढ़ ,उ. प्र.द्वारा ,) २- शब्द श्री (शिव संकल्प साहित्य परिषद ,होशंगाबाद ,म.प्र. द्वारा) ३- श्री गुगनराम सिहाग स्मृति साहित्य सम्मान, भिवानी ,हरियाणा द्वारा ४-अगीत युवा स्वर सम्मान २०१४ अ.भा. अगीत परिषद ,लखनऊ द्वारा ५-' पंडित राम नारायण त्रिपाठी पर्यटक स्मृति नवोदित साहित्यकार सम्मान २०१५, अ.भा.नवोदित साहित्यकार परिषद ,लखनऊ ,द्वारा ६-'साहित्य भूषण' सम्मान साहित्य रंगोली पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा । ७- 'साहित्य गौरव सम्मान' श्रीमती पुष्पा देवी स्मृति सम्मान समिति बरेली द्वारा । ८-'श्री तुलसी सम्मान 2017' सनातन धर्म परिषद एवं तुलसी शोध संस्थान,मानस नगर लखनऊ द्वारा ' ९- 'जय विजय रचनाकार सम्मान 2019'(गीत विधा) जय विजय पत्रिका (आगरा) द्वारा १०-'उत्तर प्रदेश काव्य श्री सम्मान' विश्व हिंदी रचनाकार