संस्मरण : नागपंचमी और नवान्न (नेवान)
गौतम गोत्रीय मिश्र परिवार का पुस्तैनी गाँव भरसी बुजुर्ग आज भी उन तमाम रीतियों, परंपराओं और संस्कारों को उसी रूप संजोए हुए है जिस रूप में पूर्वजों की रहनी करनी शदियों से चलती आई है। अगर कुछ बदला है तो वे हैं मिट्टी के दीवारों वाले कच्चे मकानों की जगह ईंट के पक्के मकान, जो गाँव की आधुनिक पहचान करवाते हैं पर आज भी कुछ कच्चे मकान अपनी अस्मिता पर अड़ीखम साक्ष्य का हूबहू दर्शन देते हैं। अच्छा लगता है उसके आगोश में बैठकर जिसमें पूर्वजिय मंशाएं झलकती रहती है। शीतली बयार सरसराती रहती है और गौरैया चहकती रहती है। वहाँ से निकल कर जब बाहर आते हैं तो समय का बदलाव नजर आता है जो एक दूसरे पर लालायित तो नही है पर अपनत्व की डोर में बंधा हुआ जरूर है। हँसता है मुस्कुराता है और छिटक कर ओझल हो जाता है। खुशी इस बात की है कि वह यह जानता है कि हम हमारे हैं और यही हमारे अपने दीदारे हैं।
सुबह नागपंचमी मनाई गई तो पूरा गाँव सकुचा गया और चाहकर भी न मन की कबड्डी खेल पाया न उछलकर ऊँची कूद, कूद पाया और नाही उन गली कुँचों को सुलझा पाया जो आपसी अनबन में सकरी हो गई हैं। कारण बस इतना कि कहीं बेमतलब झगड़ा न हो जाय। जब कि कुछ दशक पहले तक इसी दिन सारे शिकवे शिकायत आपस मे सुलझ लिया करते थे और गले मिलकर अखाड़ा भी लड़ लिया करते थे। खैर, समय समय की बात है। लोग अक्सर कहते पूछते हैं कि
क्या है नागपंचमी पर गुड़िया पीटने का राज?
उत्तरप्रदेश में नागपंचमी का त्योहार पर गुड़िया पीटने की परंपरा है।.इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं।.एक कहानी भाई-बहन की कहानी से जुड़ी है।.एक भाई भगवान शिव का परम भक्त था और वह प्रतिदिन मंदिर जाता था।. मंदिर में उसे एक नागदेवता के दर्शन होते थे.। वह लड़का रोजाना उस नाग को दूध पिलाने लगा और धीरे-धीर दोनों में प्रेम हो गया. इसके बाद लड़के को देखते ही सांप अपनी मणि छोड़कर उसके पैरों में लिपट जाता था।. इसी तरह एक दिन सावन के महीने में भाई-बहन मंदिर गए थे.। मंदिर में नाग लड़के को देखते ही उसके पैरों से लिपट गया।. बहन ने जब देखा तो उसे लगा की नाग उसके भाई को काट रहा है. लड़की भाई की जान बचाने के लिए नाग को पीट-पीट कर मार डालती है. इसके बाद जब भाई ने पूरी कहानी सुनाई तो लड़की रोने लगी.।फिर लोगों ने कहा कि नाग भी देवता का रूप होते हैं इसलिए दंड तो मिलेगा। चूंकि यह गलती से हुआ है इसलिए कालांतर में लड़की की जगह गुड़िया को पीटा जाएगा।
क्या सही है इसकी विवेचना जरूरी नहीं है पर परंपराओं का उद्देश्य कितना मूल्यवान है उसपर पुनर्विचार जरूरी है, उससे बिमुख होना क्या हितकर है? जो भी हो पर इस गाँव का नेवान आज भी अपने उसी रूप में दृष्टिगोचर होता है। गाँव के हर घर के मुखिया गुड़ दही खाकर, माथे पर उसी का चन्दन लगाकर देव स्थान पर एकत्रित होते हैं और बाबा का आशीष लेकर जयकारा करते हुए नए अन्न के प्रतीक को श्रद्धा से लाकर प्रथमेय देव को अर्पण कर अपने अपने घर जाते है पूजन करके नवान्न करते हैं। पुनः शुरू होता है इष्ट देव का दर्शन नमन और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त करना, फिर भजन कीर्तन और कजरी का वही पुराना राग…..वाह मन झूम उठता है……यादों की कजरी भी सुन लीजिए और नवान्न का प्रणाम स्वीकार करिए…..
शरारती सावन में कजरी और झूला न हो, मचलती बरखा के घर दूल्हा न हो……तो मदमाती बूंदों का क्या दोष, बरसात तो होगी ही………….ॐ जय बाबा दुलम नाथ की, ॐ जय माँ शारदे……..!
“कजरी”
घेरि घिरि आवेले ऊँघाई पिया, करि द दवाई पिया ना
मोरे ससुर जी के बड़हन पगड़ी
जेठ के बिगड़ल झाँकेले खिड़की
लहुरा देवर हरजाई पिया, करि द दवाई पिया ना……..-1
मोरि सासु जी के उज्जर अटारी
बड़की जेठानी के तमगा तिमारी
ननदी के नथ अंझुराई पिया, करि द दवाई पिया ना…….-2
आप गए परदेश में सैंया
नैहर के मीत छैल मोर भैया
मोरे मन झूला झुलाई पिया, करि द दवाई पिया ना…….-3
उमस बढ़ी है छलके पसीना
मान पान झाँके मुदरी नगीना
दर्द ‘गौतम’ अँगुली पिराई पिया, करि द दवाई पिया ना……..-4
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी